कहानी- महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध चल रहा था। युद्ध के दसवें दिन अर्जुन ने भीष्म पितामह को इतने बाण मारे कि उनका पूरा शरीर छलनी हो गया था। भीष्म के लिए बाणों की शय्या बन गई थी।
भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था। इस वजह से उन्हें उस समय मृत्यु नहीं आई। भीष्म ने तय किया था कि जब भी ये युद्ध खत्म हो जाएगा तो इसके बाद सूर्य जब उत्तरायण होगा, तब मैं प्राण त्याग दूंगा।
भीष्म के लिए उसी जगह पर एक अलग शिविर बना दिया गया था। रोज कौरव और पांडव पक्षों के लोग उनसे मिलने भी आते थे। युद्ध में पांडवों की जीत हो गई थी। इसके बाद जब वे भीष्म पितामह से मिलने से पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पितामह की आंखों से आंसू बह रहे हैं।
पांडवों ने भीष्म से पूछा, 'आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं?'
भीष्म बोले, 'तुम लोग जीत गए हो, लेकिन तुम्हारे हाथों तुम्हारे ही भाई मारे गए हैं। मेरे सामने मेरा वंश खत्म हो गया। इस वजह से मेरे दिल पर बड़ा बोझ है। मैं सोचता हूं कि जिसके रथ की कमान स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के हाथों में है, जिन पांडवों को श्रीकृष्ण ने पूरी तरह संरक्षण दिया, उन पांडवों के जीवन में भी इतने कष्ट आए हैं। तो मैं ये सोचकर आंसू बहा रहा हूं कि दुःख तो सभी के जीवन में आते हैं। हमें मजबूती से इनका सामना करना चाहिए। मैं अभी आंसू बहा रहा हूं तो मेरा मन हल्का भी हो रहा है।'
सीख - भारी मन रखकर हम कब तक जीवन बिताएंगे। जब भी मन पर कोई बोझ हो और रोना आए तो रो लेना चाहिए। आंसू बहाने से मन हल्का हो जाता है और बोझ उतर जाता है।
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