डाना गोल्डस्टेन/अलीजा ऑफ्रिचटिग. कोरोनावायरस के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शिक्षा का भी नाम है। महामारी फैलने के बाद से ही भारत में भी स्कूल-कॉलेज करीब 4 महीनों से बंद हैं। बढ़ते संकट को देखते हुए शिक्षण संस्थाएं भी ऑनलाइन क्लासेज को तरजीह दे रहे हैं। अभी तक यह साफ नहीं है कि बच्चों और टीचर्स की स्कूल के अंदर वापसी कब होगी।
अब स्कूल जब भी खुलेंगे तो वायरस के कारण हमें यहां हर कदम पर बदलाव देखने को मिलेंगे। बस, कैंटीन, क्लासरूम जैसी सभी जगहों के नजारे एकदम बदल जाएंगे। इतना ही नहीं शिक्षकों के पढ़ाने के तरीकों में फर्क आएगा। बच्चे अपने दोस्तों के साथ पहले की तरह स्कूल के दिनों का मजा नहीं ले पाएंगे। सेन डियागो पब्लिक स्कूल्स की सुपरिटेंडेंट सिंडी मार्टिन कहती हैं "यह पब्लिक एजुकेशन के इतिहास और मेरे करियर की सबसे बड़ी चुनौती है।"
ऐसे बदल जाएगा स्कूलों का चेहरा
दिन की शुरुआत बस के साथ
दुनियाभर के बच्चों के स्कूल के दिन की शुरुआत बस की यात्रा से होती है। महामारी के दौरान कई क्षेत्रों में बच्चों को घर से स्कूल तक लेकर जाना चुनौती है। इस दौरान माता-पिता को ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था करने के लिए कहा जाएगा।
सुरक्षा का ध्यान रखते हुए परिवारों को बस स्टॉप पर पहले की तरह भीड़ नहीं लगानी चाहिए। पैरेंट्स से यह कहा जाएगा कि अगर बच्चे को बुखार, खांसी या दूसरे लक्षण हैं तो उन्हें स्कूल न भेजें। महामारी से पहले एक आम स्कूल बस में 54 बच्चे हो सकते थे, लेकिन अब सोशल डिस्टेंसिंग के कारण यह संख्या घटकर केवल 8 ही रह जाएगी।
जिगजेग पैटर्न: अमेरिका में कुछ स्टेट्स की गाइडलाइन्स में जिगजेग पैटर्न का जिक्र है। इसके तहत मास्क पहने हुए बच्चे जिगजेग पैटर्न में बैठेंगे, ताकि और बच्चों को भी जगह मिले।
अब पहुंच गए स्कूल
जब बच्चे स्कूल पहुंचेंगे तो सभी को टैम्परेचर और सिम्प्टम चैक से गुजरना होगा। अगर घर का कोई बड़ा बच्चों को छोड़ने आया है तो उन्हें बैरियर के पीछे रहना होगा। पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स इस बात पर सहमति जताते हैं कि कोरोनावायरस को स्कूल से बाहर रखने का सबसे अच्छा तरीका है- विजिटर्स की संख्या को कम कर देना।
टेम्प्रेचर चैक में एसिंप्टोमैटिक और एटिपिकल कोरोनावायरस मामलों के छूट जाने का जोखिम है। इससे आम बीमारी को लेकर गलत अलर्ट हो जाएगा और यह बच्चों के पढ़ाई के समय को भी खराब करेगा। 2018 अमेरिका में करीब 60 फीसदी स्कूल ऐसे थे, जहां फुल टाइम नर्सेज नहीं थीं। अमेरिकी गाइडलाइंस के अनुसार, लक्षणों की जांच के दौरान फेल हो जाने वाले छात्रों को केयरटेकर के आने तक आइसोलेट कर देना चाहिए।
प्राइमरी क्लासरूम में बच्चे कम होंगे
छोटे बच्चों को उनके नेचर और एनर्जी के कारण एक-दूसरे से अलग रखना सबसे मुश्किल काम हो सकता है। इसके अलावा कई गाइडलाइंस ने इस बात को माना है कि छोटे बच्चों से मास्क पहनने की उम्मीद करना वास्तविक नहीं है।
सुरक्षा के लिहाज से कई स्कूल बच्चों को पॉड में रखने की कोशिश करेंगे। क्लास का साइज छोटा कर बच्चों की संख्या को करीब 12 कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं क्लासरूम में बातचीत को भी सीमित कर दिया जाएगा। इस तरह से अगर किसी एक पॉड में कोई पॉजिटिव मामला मिला है तो उन्हें पूरी क्लास को बंद करने की जरूरत नहीं होगी।
कुछ गाइडलाइंस टीचर्स को मास्क के बजाए फेस शील्ड पहनने की सलाह देती है। किसी बड़े के चेहरे को देखना बच्चों को चीजें समझने में मदद करता है। इससे बच्चे बोली हुई चीजें और लिखे हुए शब्दों में कनेक्शन को समझ पाएंगे। जिस टेबल पर पहले 4 या 6 बच्चे बैठा करते थे, वहां अब दो ही बच्चों को जगह मिलेगी।
हर बच्चे के पास एक्टिविटी का अलग-अलग बॉक्स होगा। हां इसका खर्च स्कूल, टीचर्स या माता-पिता को उठाना पड़ेगा। कई स्कूल जिम, कैफेटेरिया जैसी दूसरी जगहों को भी पढ़ाई के लिए उपयोग करने के बारे में सोच रहे हैं।
टीचर्स सबसे ज्यादा जोखिम में हैं: अपने दिनभर के काम के दौरान टीचर्स के वायरस के चपेट में आने की आशंकाएं ज्यादा हैं। वे बच्चों, पैरेंट्स, दूसरी टीचर्स से लगातार संपर्क में रहते हैं। इनके जोखिम को कम करने के लिए पैरेंट-टीचर मीटिंग और स्टाफ प्लानिंग मीटिंग्स को घर से ही किया जा सकता है।
खास जरूरतों वाले बच्चों के साथ काम करने वाले टीचर्स दूसरे शिक्षकों के साथ क्लास के अंदर तैनात होते हैं। यहां उन्हें बच्चों को हाथ के जरिए ही संभालना होता है। इस दौरान टेक्स्ट मैसेजिंग और मास्क पहनकर कान में बात करना मददगार हो सकता है।
टीचर्स को वेंटिलेशन का रखना होगा ध्यान
स्कूल के अंदर टीचर्स को क्लासरूम की खिड़कियां खुले रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे एयर सर्कुलेशन बेहतर होगा। बाहर रहना भी जोखिम को कम करने के मुमकिन तरीकों में से एक हो सकता है। इससे हवा के जरिए वायरस फैलने का जोखिम कम हो जाता है।
टीनएजर्स को ज्यादा खतरा इसलिए मिडिल और हाई स्कूल में बदलाव जरूरी
बड़े छात्र अलग-अलग विषयों के लिए दूसरे क्लास रूम्स में जाते हैं। इसके बजाए हेल्थ गाइडलाइंस उन्हें जितना देर तक हो सके पॉड्स में रहने की सलाह देती हैं। रिसर्च बताती हैं कि छोटे बच्चों की तुलना में टीनएजर्स को कोरोनावायरस का ज्यादा खतरा होता है।
ऐसे में इस उम्र के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है। अमेरिका में कुछ राज्य क्लास रूम्स में प्लैसीग्लास डेस्क डिवाइडर्स के लिए सैकड़ों डॉलर खर्च कर रहे हैं। कुछ छात्र क्लास में रहकर भी रिमोट लर्निंग कर सकते हैं।
स्टूडेंट्स हॉल-वे या कॉरिडोर में तय समय में यूनिडायरेक्शनल (एक ही दिशा में) यात्रा करनी होगी। स्कूलों को दोबारा शुरू करने वाले कुछ देशों में इसी तरह की गाइडलाइंस का पालन किया जा रहा है। संक्रमण के मामले कम होने पर डिस्टेंसिंग में भी ढील दी गई है।
बच्चों से वायरस और उपायों को लेकर चर्चा करें टीचर्स
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एडोलसेंट हेल्थ और डेवलपमेंट के एक्सपर्ट डॉक्टर रोनाल्ड ई डाल के मुताबिक, स्कूल का दिन ठीक रहे इसके लिए बच्चों को महसूस कराना होगा कि उन्होंने इस दिन में निवेश किया है। इसे पूरा करने के लिए टीचर्स उन्हें वायरस के साइंस और फिजिकल डिस्टेंसिंग की जरूरत के बारे में बताने संबंधी बातों में शामिल कर सकते हैं।
डॉक्टर रोनाल्ड ने पाया कि बच्चों के दूसरों से बात करने, मजाक करने खेलने के नेचर के चलते यह बेहद चुनौती भरा होगा। उन्होंने कहा कि छोटी उम्र वालों में भी अच्छे और बुरे की समझ होती है और वे दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। यह उन्हें अपने दोस्तों और परिवार को स्वस्थ्य रखने में मदद करती है।
(इलस्ट्रेशन- यूलिया पर्शिना-कोटास)
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