डिनीस ग्रेडी. डबल लंग ट्रांसप्लांट, एक ऐसी सर्जरी जिसे डॉक्टर तब तक नहीं करना चाहते, जब तक मरीज के फेफड़ों के ठीक होने की कोई उम्मीद होती है। यह सर्जरी केवल उन्हीं मरीजों पर की जाती है, जिनके फेफड़े लगभग डैमेज हो चुके होते हैं। इस ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को एक गंभीर ऑपरेशन से गुजरना होता है। इसके अलावा दोबारा पैरों पर खड़े होने के लिए बहुत बहादुर भी होना पड़ता है।
यह कहानी है शिकागो के नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल हॉस्पिटल में भर्ती 28 साल की मायरा रामिरेज की, जो अमेरिका में कोविड-19 ने कारण डबल लंग ट्रांसप्लांट सर्जरी से गुजरने वाली पहली मरीज हैं। बीते बुधवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। मायरा उन मरीजों में से हैं, जिनके फेफड़ों को कोरोनावायरस ने खत्म कर दिया है और उनके बचने का सिर्फ एक ही तरीका है लंग ट्रांसप्लांट।
लोगों को इसके साथ थोड़ा सहज होना होगा
मायरा का इलाज करने वाले भारतीय मूल के सर्जन डॉक्टर अंकित भरत बताते हैं, "यह एक उदाहरण देने वाला बदलाव है। लंग ट्रांसप्लांट को संक्रामक रोग के इलाज के तौर पर नहीं समझा जाता है, इसलिए लोगों को इसके साथ थोड़ा और सहज होना होगा।" 5 जुलाई को उन्होंने ऐसा ही ऑपरेशन दूसरे कोविड मरीज 62 साल के ब्रायन का किया।
ब्रायन ने ट्रांसप्लांट से पहले 100 दिन लाइफ सपोर्ट मशीनों पर गुजारे। अस्पताल की तरफ से जारी किए गए स्टेटमेंट में ब्रायन की पत्नी नैंसी ने कहा कि बीमार होने से पहले उन्हें लगता था कि कोविड धोखा है। ब्रायन ने कहा, "अगर मेरी कहानी आपको एक चीज सिखा सकती है तो वो यह है कि कोविड 19 मजाक नहीं है।" डॉक्टर भरत बताते हैं कि अभी दो और मरीज लंग ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं।
डॉक्टर के लिए भी चुनौती बनी सर्जरी
- डॉक्टर भरत कहते हैं, "कुछ मामलों में अस्पतालों को ट्रांसप्लान्ट की सलाह देने से पहले इंतजार करना पड़ता है। उनके सेंटर पर पहुंचा एक व्यक्ति स्वस्थ दिख रहा था, लेकिन इसके बाद उसके फेफड़ों में खून बहने लगा और किडनी फेल हो गई। ऐसे में सर्जरी संभव नहीं थी। इसलिए मुझे लगता है कि लोगों को इस ऑप्शन को पहले ही पहचान लेना चाहिए और कम से कम इसके बारे में बात करनी चाहिए।"
- डॉक्टर टियागो मचुका बताते हैं, "यह हमारे फील्ड के लिए एकदम नया है। फिजिशियन्स के लिए मरीज और समय का पता करना एक चुनौती होगी। हम इसे बहुत जल्दी नहीं करना चाहते, जब मरीज कोविड लंग डिसीज से उबर सकता है और अच्छा जीवन जी सकता है। साथ ही आप सर्जरी करने का मौका भी नहीं गंवा सकते।"
मायरा अस्पताल पहुंची, लेकिन अंदर नहीं गईं
- बीमार होने के पहले मायरा घर से ऑफिस का काम कर रही थीं। यहां तक कि ग्रॉसरी का सामान भी घर पर ही डिलिवर करा रही थीं। वे स्वस्थ थीं, लेकिन उन्हें न्यूरोमायलिटिस ऑप्टिक परेशानी थी। इसकी दवाई ने इम्यून सिस्टम को दबा दिया था और शायद इसी वजह से उन पर कोरोनावायरस का जोखिम बढ़ गया।
- मायरा दो हफ्तों तक बीमार थीं। इस दौरान उन्होंने अपने लक्षणों के बारे में कोविड हॉटलाइन पर भी बात की। एक मौके पर वे अस्पताल भी गईं, लेकिन अंदर नहीं गईं। वे भर्ती होने के विचार से घबरा गईं और खुद को यकीन दिलाया कि ठीक हो जाऊंगी।
- अप्रैल 26 को उनका तापमान 105 डिग्री फॉरेनहाइट पहुंच गया। वे इतनी कमजोर हो गईं थीं कि चलने की कोशिश की तो गिर गईं। उनके दोस्त ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। जब डॉक्टर्स ने मायरा से कहा कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ेगा तो वे कुछ नहीं समझ पाईं।
- मायरा कहती हैं, "मुझे लगा कि मैं यहां कुछ ही दिन के लिए हूं और जल्द अपने आम जीवन में वापस चली जाऊंगी।" उन्होंने वेंटिलेटर पर 6 हफ्ते गुजारे और उन्हें ऐसी मशीन लगानी पड़ी जो ऑक्सीजन को सीधे ब्लड स्ट्रीम तक पहुंचाए।
- मायरा कहती हैं कि मुझे हर समय डरावने सपने आ रहे थे। ऐसे सपने आ रहे थे कि वे डूब रही हैं, परिवार के सदस्य उन्हें अलविदा कह रहे हैं, डॉक्टर्स उनसे कह रहे हैं कि वे मरने वाली हैं।
बैक्टीरिया फेफड़ों पर घाव कर रहा था, डॉक्टर ने अलविदा कहने के लिए परिवार को बुला लिया था
मायरा की बीमारी बहुत दर्दनाक थी। उनके अंदर बैक्टीरिया जम गए थे, वे फेंफड़ों पर घाव पहुंचा रहे थे और गड्ढों को खा रहे थे। फेफड़ों के खराब होने का असर सर्कुलेट फंक्शन पर भी पड़ा, जिससे उनके लीवर और हार्ट में परेशानियां होने लगीं। डॉक्टर्स ने उनके परिवार को अलविदा कहने के लिए बुलाया, लेकिन मायरा डटी रहीं। उनके शरीर से कोरोनावायरस को साफ किया गया और ट्रांसप्लांट की सूची में डाला गया। दो दिन बाद 5 जून को वे 10 घंटे तक चले ऑपरेशन से गुजरीं।
शरीर पर थे जख्म, बोलीं- "मैं अपने शरीर को पहचान नहीं सकती थी"
जब मायरा उठीं तो उनके शरीर पर घाव थे, उन्हें प्यास लगी थी और बात नहीं कर पा रहीं थीं। मायरा कहती हैं, "मेरे अंदर से इतने ट्यूब्स बाहर आ रहे थे कि मैं अपने शरीर को नहीं पहचान सकती थी। जब नर्सेज ने मुझसे तारीख पूछी तो मैंने मई की शुरुआत का अंदाजा लगाया, जबकि तब जून का महीना था।"
संक्रमण की चिंता के चलते मायरा का परिवार उनसे मिलने नहीं जा सकता था। गुरुवार को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायरा ने कहा, "अकेले वक्त गुजरना सबसे मुश्किल हिस्सा था। मैं चिंता और पैनिक अटैक्स का भी शिकार हुई।" बाद में नियमों में ढील दी गई और तब जाकर उनकी मां-बेटी से मिल सकीं।
चलने, नहाने और कुर्सी से उठने के लिए भी मदद लेनी होती है
बीमार होने से पहले मायरा फुल टाइम जॉब करती थीं और अपने दो पैट्स के साथ खेलती थीं। हालांकि, वे अब भी सांस लेने में तकलीफ महसूस करती हैं। अब वे थोड़ा ही चल पाती हैं, नहाने और कुर्सी से उठने के लिए भी मदद लेनी पड़ती है। मायरा कहती हैं कि वे अपने नए फेफड़ों का इस्तेमाल करना सीख रही हैं और दिन-ब-दिन मजबूत हो रही हैं।
अपनी कहानी सुनाना और दूसरों की मदद करना चाहती हैं मायरा
मायरा कहती हैं कि मुझे महसूस होता है कि मेरे पास मकसद है। यह उन लोगों की मदद के लिए हो सकता है जो उसी स्थिति से गुजर रहे हैं, जहां से मैं गुजरी हूं। या केवल मेरी कहानी शेयर करना और युवाओं को यह एहसास दिलाने में मदद करना कि अगर यह मेरे साथ हो सकता है तो आपके साथ भी हो सकता है।
इसके अलावा खुद को सुरक्षित रखना और अपने आसपास दूसरों को भी जो ज्यादा संकट में हैं। उन्हें प्रोत्साहित करना और दुनियाभर में दूसरे सेंटर्स को एहसास दिलाना कि बीमार कोविड के मरीजों के लिए लंग ट्रांसप्लांटेशन एक रास्ता है।
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