‘चलो रे चलो...कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर। मानस से मानसरोवर के सफर पर।’ इस नारे के साथ कैलाश मानसरोवर निष्काम सेवा समिति के अध्यक्ष उदय कौशिक एक अनूठी यात्रा पर चल पड़े हैं। वे कैलाश दर्शन करने वाले 20 हजार से ज्यादा उन कैलाशियों में शामिल हैं, जो मानसिक तीर्थ करने का अभियान चला रहे हैं।
जून से सितम्बर के बीच हर साल होने वाली इस यात्रा में शामिल हो चुके कैलाशी इस अवधि में अपनी यात्रा की वर्षगांठ उसी धूमधाम से मना रहे हैं, जैसे लोग जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ या अन्य स्मरणीय तिथियां मनाते हैं। वे साथियों के साथ सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। अपनी यात्राओं के चित्रों और वीडियो काे साझा कर रहे हैं।
कौशिक ने बताया कि 22 जून से गुप्त नवरात्रि भी शुरू हो चुकी है। इसे मानसिक साधना के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है। मान्यता है कि यदि यात्रा श्रद्धाभाव से की जाए तो शिव को आत्मसात किया जा सकता है। इसलिए कैलाश दर्शन कर चुके लोग अपने अनुभव ज्यादा से ज्यादा लोगों से साझा कर रहे हैं।
कैलाश मानसरोवर यात्रा 1981 से शुरू हुई थी। इस साल कैलाश यात्रा उत्तराखंड के रूट से सिर्फ तीन दिन में नए मार्ग से होनी थी, क्योंकि सीमा सड़क संगठन धारचुला से लेकर लिपुलेख तक के रास्ते को वाहन मार्ग के लिए उपयुक्त बना चुका है। कोरोना से चीन जाना वैसे भी जोखिमभरा था। इसी बीच, चीन और भारतीय सेना के बीच लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। इधर, नेपाल ने भी लिपुलेख की भारतीय सड़क पर आपत्ति दर्ज कराई और एक नया नक्शा पास करते हुए भारत के एक हिस्से को अपना बता दिया।
अधिकारी बोले- मानसिक मानसरोवर यात्रा एक आध्यात्मिक प्रयास
कैलाश यात्रा में 2014 में सम्पर्क अधिकारी रह चुके अमित गुलाटी कहते हैं कि मानसिक मानसरोवर यात्रा एक आध्यात्मिक प्रयास है। इसमें हर कैलाशी अपनी यादों को दोहरा कर कैलाश के अलौकिक दर्शन कर सकता है। इन सब स्मृतियों को मानसिक मानसरोवर यात्रा अनुष्ठान का हिस्सा बनाया जा सकता है।
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