Email subscription

header ads

वैज्ञानिकों ने तीन साल में 19% समुद्र की सतह को मापा, बचा हिस्सा इतना बड़ा कि उसमें दो मंगल ग्रह आसानी से समा सकते हैं

भविष्य में जलवायु में कैसा परिवर्तन आएगा, इसका अनुमान लगाने के लिए वैज्ञानिक समुद्र का अध्ययन कर रहे है। 2017 में निप्पॉन फाउंडेशन ने जेबको सीबेड 2030 प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इसके तहत दुनियाभर के समुद्र की गहराई को मापने का लक्ष्य तयकिया गया।

अब तीन साल बाद वैज्ञानिकों ने दुनिया के 19% समुद्र को मापने का काम पूरा कर लिया है। लेकिन, उनके हिस्से में जो काम बचा है वह क्षेत्र इतना बड़ा है कि इसमें दो मंगल ग्रह आसानी से समा सकते हैं। पृथ्वी का व्यास 12,750 किमी है जबकि मंगल का 6,790 किमी। वैज्ञानिकों ने पिछले तीन साल में समुद्र की सतह का पांचवां हिस्सा यानी 1.45 करोड़ वर्ग किमी मापने का काम पूरा कर लिया है।

गहराई मापने के लिए स्पेसक्राफ्ट अल्टीमीटर उपकरण इस्तेमाल करते

सीबेड प्रोजेक्ट के डायरेक्टर जेमी मैकमाइकल फिलिप्स का कहना है कि समुद्र की अथाह गहराई को मापने के लिए हम एक विशेष प्रकार का स्पेसक्राफ्ट अल्टीमीटर उपकरण इस्तेमाल करते हैं। इस तकनीक का इस्मेमाल हम पानी के अंदर केबल लाइन बिछाने के लिए, समुद्र में नेवीगेशन और मत्स्य प्रबंधन या फिर मछुआरों की जान बचाने के लिए करते हैं। समुद्र तल के नीचे दुनिया की सबसे बड़ी विविधता मौजूद है, जो जमीन से बहुत बड़ी है।

समुद्री सतह के अध्ययन के साथ हम समुद्री पानी के बहाव और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने वाले महासागरों का जलवायु परिवर्तन पर होने वाले प्रभाव की रिसर्च कर रहे हैं। हम यह पता कर रहे हैं कि भविष्य में कहां समुद्री पानी बढ़ेगा ताकि हम इसकी सतह की सही तरीके से मैपिंग कर सकें।

ब्रिटिश-अमेरिकी कंपनी ओशन इंफिनिटी ने समुद्री सतह को मापने के लिए एक रोबोटिक जहाज बनाया है, जो समुद्री किनारे से लेकर दूरस्थ स्थानों को नापने का काम भी करेगा। इससे समुद्र में केबल बिछाने वाली कंपनियों को आसानी होगी। जेबको एक इंटर गवर्नमेंटल संस्थान है, जो दुनिया में मिलजुल कर समुद्र की गहराई मापने का काम कर रही है।

अल्ट्रासोनिक तरंगें पैदा कर मापी जाती है समुद्री सतह की गहराई
वैज्ञानिक समुद्र की गहराई का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों को समुद्र के अंदर भेजते हैं, जो सतह से टकराकर परावर्तित हो जाती है। इन तरंगों को प्राप्त करके उनके जाने और वापस आने में लगे समय को आधा करके उसे समुद्र के पानी में ध्वनि के वेग के मान से गुणा करके समुद्र की गहराई मापी जाती है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि भविष्य में कहां समुद्री पानी बढ़ेगा ताकि इसकी सतह की सही तरीके से मैपिंग की जा सके।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dqlNL0

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ