जयपुर से एक महिला का ट्विटर पर मैसेज आता है कि साहब मेरी बच्ची के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं और उसके पास कुछ ही घंटों बाद आठ फ्रॉक पहुंच जाती हैं।
ऐसा ही एक और मैसेज आता है जिसमें लिखा होता है कि, हमारे बच्चे को मिर्गी है, लेकिन जिस दवा से राहत मिल सकती है वो भारत में है ही नहीं।
महिला के इस ट्विट के तुरंत बाद ट्विटर पर विदेश से दवा बुलवाने की मुहिम शुरू हो जाती है और कुछ ही दिनों में दवा जरूरतमंद तक पहुंच भी जाती है।
एक संदेश ये भी आता है कि हम 50 लोग भूखे हैं, क्या खाने का कुछ इंतजाम हो सकता है। कुछ ही घंटों बाद उन तक खानापहुंच जाता है।
यह महज बानगी है। ऐसे ढ़ेरों मामलों में लोगों को ट्विटर पर मैसेज करने के चंद घंटों बाद ही मदद मिल रही है।
यह काम कोई राजनीतिक दल या उद्योगपति द्वारा नहीं किया जा रहा, बल्कि आईपीएस अरुण बोथरा अपने 600 सक्रिय वॉलेंटियर्स के साथ मिलकर इसे अंजाम दे रहे हैं।
बोथरा आईजी क्राइम से लेकर सीबीआई तक में अहम ओहदों पर पोस्टेड रह चुके हैं। हाल फिलहाल ओडिशामें हैं और वहां दो सरकारी बस कंपनियों और बिजली कंपनी के प्रमुख हैं।
वे कहते हैं लॉकडाउन शुरू होने के बाद ही मेरे ट्विटर पर लोगों के मदद के लिए मैसेज आना शुरू हो गए थे। मैंने डायरेक्ट मैसेज का ऑप्शन ओपन रखा है।
साथ ही लिखा भी था कि किसी भी जरूरत के लिए सीधे मैसेज करें। तब से ही तमाम मैसेज आ रहे हैं। हम डेडबॉडी को घर पहुंचाने से लेकर स्टूडेंट तक किताबें पहुंचाने तक का काम कर चुके हैं।
आखिर ये सब आप कैसे कर रहे हैं? पैसा कौन लगा रहा है? इस पर बोथरा कहते हैं कि, देश के 29 राज्यों में हमारे 3 हजार से भी ज्यादा वॉलेंटियर्स हैं। लोग खुद ही ट्विटर पर मुझसे जुड़ते गए।
फिर इंडिया केयर्स नाम का ट्विटर पर ग्रुप बनाया गया। एक कोर ग्रुप अलग बना। जो भी मदद के मैसेज आते हैं, उन्हें वॉलेंटियर्स के ग्रुप में डाला जाता है। जो मदद कर सकता है, वो खुद ही आगे आ जाता है।
हमारा आईएएस-आईपीएस का भी ग्रुप है, जिसमें 20-22 सदस्य हैं। जो काम वॉलेंटियर्स के ग्रुप में नहीं हो पाते, वो काम हम इस ग्रुप के जरिए करते हैं। कहीं न कहीं से कोई न कोई मदद कर ही देता है।
कहते हैं, हमारा रूल बनाया है कि पैसों का कोई लेनदेन नहीं। कोई डोनेशन नहीं। हम अपने नेटवर्क के जरिए सीधी मदद पहुंचाने का काम कर रहे हैं। वॉलेंटियर्स भी अपने स्तर पर मदद कर रहे हैं। ग्रुप में 600 एक्टिव वॉलेंटियर्स हैं।
ऑफिस की जिम्मेदारी के साथ यह कैसे कर लेते हैं ? इस पर बोथरा कहते हैं ऑफिस का काम रात में 8 बजे तक निपट जाता है। इस इस काम में लग जाता हूं। मैसेज चेक करता हूं। रिप्लाई करता हूं।
जिन लोगों को फोन करना होता है, उन्हें फोन करता हूं। रात में 2 बज जाते हैं, यह काम करते-करते। लेकिन इससे जो सुकून मिलता है, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
आईपीएस बोथरा की पत्नी डॉक्टर कीर्ति सिंघवी कहती हैं, घर में हर हम हर रोज डिस्कस करते हैं कि आज किन-किन लोगों को मदद मिली। अच्छी खबर सुनने से पॉजिटिविटी आती है।
बीते करीब दो माह में 1150 मामलों में मदद पहुंचाई जा चुकी है। सिलसिला अभी भी जारी है। ये सब करने पर अरुण बोथरा एक ही बात कहते हैं कि, ‘ये मैंने नहीं किया, ये मेरे द्वारा हुआ है।'
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