35 साल के आसाराम मूल रूप से झांसी के रहने वाले हैं। बीते कई सालों से वे सोनीपत के कुंडली इंडस्ट्रीयल एरिया में बतौर सहायक नौकरी कर रहे थे। 24 मार्च से जब देश भर में लॉकडाउन शुरू हुआ तो उनकी कंपनी भी अस्थायी रूप से बंद हो गई। इसके साथ ही आसाराम को मिलने वाली पगार पर भी पूर्णविराम लग गया।
आसाराम कहते हैं, ‘मार्च के महीने में भी मुझे पूरे महीने की पगार नहीं मिली थी और उसके बाद तो एक पैसा भी नहीं मिला। शुरू में लगा था कि दो-तीन हफ्ते बाद शायद काम शुरू हो जाएगा तो वापस नौकरी मिल जाएगी। लेकिन दो महीने होने तक भी जब काम शुरू नहीं हुआ यहां रहना बहुत मुश्किल होने लगा।’
लॉकडाउन जैसे-जैसे बढ़ता गया आसाराम और उनके साथ काम करने वाले तमाम लोगों की मुश्किलें भी बढ़ती गई। लिहाजा एक-एक कर आसाराम के तमाम साथी अपने-अपने गांव लौटने लगे। कुछ साइकल से तो कुछ पैदल ही अपने-अपने मूल निवास की ओर बढ़ गए। बिना किसी कमाई के परदेस में टिके रहना आसाराम के लिए भी लगातार मुश्किल होता जा रहा था। वे भी चाहते थे कि किसी भी तरह अपने गांव लौट जाएं। लेकिन उनकी पत्नी आठ महीने की गर्भवती हैं लिहाजा पैदल या साइकिल से गांव जाना उनके लिए सम्भव नहीं था।
आसाराम और किरण की परेशानी लगातार बढ़ रही थी। पैसे खत्म हो रहे थे, आय का कोई जरिया नहीं था, खर्चे जस के तस बने हुए थे, बच्चे की डिलीवरी का समय नजदीक आ रहा था और देखभाल करने वाला कोई तीसरा व्यक्ति साथ में नहीं था। डिलीवरी के लिए अस्पताल जाना पड़े तो वहां का खर्चा कैसे पूरा होगा, ये भी अब भगवान भरोसे था। ऐसे में यह खबर इन दोनों के लिए किसी चमत्कार की तरह से आई कि कुंडली इंडस्ट्रीयल एरिया से उत्तर प्रदेश के लिए बसें चलने वाली हैं और जो भी जाना चाहे वो जा सकता है।
आसाराम बताते हैं, ‘17 मई को स्थानीय प्रशासन ने हमारे इलाके में इसकी घोषणा करवाई। बताया गया कि कल सुबह सब लोगों की मेडिकल जांच होगी और फिर उन्हें बसों से उनके घर भेज दिया जाएगा। 18 मई को सुबह हमने भी अपनी जांच करवाई और शाम को करीब छह बजे हम लोग बस में बैठ गए। इसके लिए करीब तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। बस पकड़ने की जल्दबाजी में तेजी से चलते हुए किरण के पैर में मोच भी आ गई।’
आसाराम कहते हैं, ‘बस में बैठते हुए हमें लगा था कि भगवान ने हमारी सुन ली है और अब शायद हमारी परेशानी कम हो जाएगी। नौकरी तो रही नहीं, लेकिन कम से कम डिलीवरी के लिए हम अपने गांव अपने मां-बाप के पास तो पहुंच जाएंगे। हमें नहीं पता था कि ये सफर हमारी मुश्किलों को और भी बढ़ाने वाला है।’
आसाराम और उनकी पत्नी की मुश्किलें तब बेहद बढ़ गई जब सोनीपत से चली उनकी बस को शामली पहुंचने पर उत्तर प्रदेश प्रशासन ने अपने राज्य में दाखिल होने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर कई घंटे खड़े रहने के बाद सोनीपत से चली इन छह बसों को वापस सोनीपत लौटना पड़ा।
किरण कहती हैं, ‘इस गर्मी में हमें यहां लाकर छोड़ दिया गया है। इससे तो बेहतर तो हम अपने कमरे में थे। इसी डर से तो बाहर नहीं निकले थे कि ऐसी स्थिति में अगर कहीं फंस गए तो क्या होगा। यहां आए हुए तीस घंटे से ज्यादा हो चुके हैं और अभी कोई पता नहीं कि आगे क्या होगा। यहां पूरे परिसर में एक भी शौचालय तक नहीं है।’
अक्टूबर 2019 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह दावा कर दिया था कि अब भारत खुले में शौच से मुक्त हो चुका है। लेकिन इस दावे को धता बताते हुए हरियाणा प्रशासन ने इन 250 लोगों को ऐसी जगह लाकर छोड़ दिया है कि खुले में शौच के लिए जाना ही इनके पास एकमात्र विकल्प है।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे तमाम राज्यों के चुनावों में भाजपा और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से अपील की थी कि उन्हें डबल इंजन की सरकार बनाने के लिए भाजपा को वोट देना चाहिए। आज हरियाणा, उत्तर प्रदेश और केंद्र, तीनों ही जगह भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन ट्रिपल इंजन की ये सरकारें मिलकर भी इतना जोर नहीं लगा सकी कि किरण और आसाराम जैसे लोगों को सोनीपत से झांसी तक पहुंचा सकें।
यह मामला राज्य सरकारों की भारी चूक को इसलिए भी दर्शाता है क्योंकि किरण जैसे लोगों को उनके ठिकानों से बुलाकर अधर में छोड़ा गया है। ये वे लोग नहीं हैं जो अपनी मर्जी या मजबूरी से सड़कों पर निकल गए हों और इसलिए अचानक इनकी व्यवस्था करना प्रशासन के लिए चुनौती बना हो।
इन्हीं लोगों में शामिल एक युवा महावीर भारती कहते हैं, ‘हमें अपने कमरों से उठाकर पिछले दो दिन से यहां छोड़ दिया गया है। अब यहां सिर्फ पुलिस के जवान हैं जो सीधे मुंह बात भी नहीं करते। उनसे पूछते हैं कि हम घर कब जाएंगे तो वो कहते हैं कि तुम्हें खाना मिल रहा है न, इतना काफी नहीं है क्या। ऐसे ही छोड़ देना था तो हमें बुलाया ही क्यों गया।’
दो दिन यहां रहने के बाद 20 मई की दोपहर एक बार फिर कुछ बसें इन लोगों को लेने पहुंची। इस बार इन लोगों को उत्तर प्रदेश में दाखिल तो होने दिया गया लेकिन घर पहुंचना अब भी इन्हें नसीब नहीं हुआ। इस बार इन लोगों को सोनीपत से बसों में भरकर सहारनपुर में उतार दिया गया। अब राधा स्वामी सत्संग व्यास का एक मैदान इनका ठिकाना बन गया।
महावीर कहते हैं, ‘प्रशासन के लोग कह रहे हैं कि यहां से आगे के लिए ट्रेन चलाई जाएगी और उनसे हमें भेजा जाएगा। लेकिन ट्रेन कब चलेगी इस बारे में कोई कुछ नहीं बता रहा।’
राज्यों के कुप्रबंधन की कीमत चुका रहे ऐसे हजारों लोग इन दिनों दिल्ली-करनाल हाइवे पर नजर आ रहे हैं। किरण जैसे लोगों से भी ज्यादा दयनीय स्थिति 22 साल की रितु की है। रितु भी गर्भवती हैं और उनके साथ उनके पति भी नहीं है। वे बताती हैं कि कुछ महीनों पहले उनके पति का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वो उन्हें ऐसी ही स्थिति में छोड़ कर गांव चला गया। 20 मार्च को रितु की मां बिहार के कटिहार से उन्हें लेने आई लेकिन वो रितु को लेकर लौट पाती उससे पहले ही लॉकडाउन हो गया। अब ये मां-बेटी घर जाने के लिए जगह-जगह भटक रही हैं।
इन लोगों को हरियाणा प्रशासन घर भेजने का आश्वासन भी नहीं दे रहा क्योंकि कुंडली इंडस्ट्रीयल एरिया से सिर्फ उत्तर प्रदेश जाने वालों के लिए ही बसें चलाई गई हैं। ऐसे में बिहार जाने वालों का क्या होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। रितु की मां इंदिरा देवी कहती हैं, ‘किसी ने बताया था कि सोनीपत से बसें चाली जा रही हैं तो हम यहां पहुंचे थे। लेकिन पुलिस वाले बोल रहे हैं कि यहां सिर्फ उत्तर प्रदेश जाने वाले ही रुक सकते हैं और उन्हें ही भेजा जाएगा। बिहार जाने वालों की अभी कोई व्यवस्था नहीं है।’
राष्ट्रीय राजमार्ग जब पैदल चलते मजदूरों से भरे पड़े हैं और तपती धूप में हजारों लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ धक्के खा रहे हैं तब राज्यों के बीच में तालमेल की ऐसी कमी अपराध की हद तक गंभीर लगती हैं। वह भी तब जब इन राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार है। एक तरफ हजारों मजदूर बसों के इंतजार में जगह-जगह फंसे हुए हैं, हजारों पैदल चलने को मजबूर हैं, हजारों बहुत भारी किराया चुकाकर निजी बस मालिकों द्वारा लूटे जा रहे हैं और दूसरी तरफ विपक्ष द्वारा भेजी गई आठ सौ से ज्यादा बसें बैरंग ही लौट रही हैं क्योंकि उन्हें अनुमति नहीं दी गई। संकट के इस दौर में देश के ये लाखों मजदूर सिर्फ बीमारी और आर्थिक मंदी की महामारी से ही नहीं बल्कि नकारात्मक राजनीति की महामारी से भी जूझ रहे हैं।
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